Wednesday, December 26, 2007

कौन दुश्मन हैं?

गुलाम तुम भी थे यारो, गुलाम हम भी थे
नहा के खून में आयी थी फ़स्ले आज़ादी

मज़ा तो तब था के मिलकर इलाज-ए-जाँ करते
खुद अपने हाथ से तामीर-ए-गुलसिताँ करते

हमारे दर्द मे तुम, और तुम्हारे दर्द मे हम
शरीक होते तो जश्न-ए-आशियाँ करते

तुम आओ गुलशन-ए-लाहौर से चमन बरदोश
हम आयें सुबह-ए-बनारस की रोशनी लेकर,
हिमालयों की हवाओं की ताजगी लेकर,
और इसके बाद ये पूछें, कौन दुश्मन हैं?

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